पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१७५

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अध्याय ४ था] तथा पजात्र-काण्ड जाननेके हेतु एक ब्राह्मण खुफिया नियुक्त किया था। इस ब्राह्मणने देशद्रोही का काम बडी ईमानदारीके साथ अदा किया। मातगामेरीसे कहा " साब ! क्रानिका विष सैनिकोके अहर पूरा मिट गया है, (गलेपर तर्जनीको फेरकर ) परेपूर !!" ब्राह्मणके इस अभिनयपूर्ण वाक्यसे लॉरेन्स तथा मॉतगामेरीकी स्त्र परी खुल गयी। उन्हे मालम हो गया कि, • क्रातिका संगठन केवल उत्तरभारत ही में नही, पजाबमे भी हद हुआ था। पजानम कातिर्की अग्नि काफी धधुवाती रही केवल चिनगारी पडनेकी टोहमे थी ! यह गुप्त रहस्य मेरठ के अचानक बलवेसे जाननेका अनायास अवसर उनके हाथ लगा | मॉतगामेरीने मेरटके बलवेको मनहीं मन धन्यवाद देकर तुरन्त मिपाहियोको निशस्त्र करनेकी आज्ञा दी। ३० मई को सवेरे मियामीरके सिपाहियों का सामूहिक सचलन होनकी आशा हुई। हिंदी सिपाहियोको अपने भविष्यके वारेम रच भी सदेह पैदा न हो जाय, इस लिए गार लोगकि लिए एक सदर नाचका आयोजन जानबूझकर किया गया। मनोविनोदके रहस्य पर कातिकारी सिपाही सोचे इसके पहले ही गोरे रिसाले तथा तोपखानेने सत्र हिंदी सिपाहियोंको घेर लिया। सिपाही भौचक्के हुए । जब सचलन चालू था, तभी तोपें तयार रखने की आजा दी गयी थी। सिपाहियोंसे सख्तीसे शस्त्र रखवाये गये। क्रोधसे कॉपते किन्तु सुसजित तोपखानेको देख पस्त हुए लाचार हजारो सिपाही हथियार डालकर एक शब्द भी मुंहसे न निकालते हुए सीधे अपने बारिकोको लौटे। इन्हीं सिपाहियोने अफगानी युद्ध में अग्रेजोके प्राण बचाये थे। इनसे सत्र रखवानेका काम जारी था तभी लाहौरके किलेकी ओर एक गोरी पलटन भेजी गयी । इन गोरोने किलेके तोफखानेके बलपर किलेके हिंदी सिपाहियोंसे शस्त्र रखवाये, उन्हे निकाल बाहर कर दिया और किलेपर काबू जमा लिया। इस आयोजनमे अग्रेज यदि रचभी लचरपन या ढीलापन रखते तो केवल एक पखवाडेके अदर पंजाबभरमे कातिकी ज्यालाएँ धूम मचानेका दृश्य दीख पडता। क्यो कि, मियॉमीरके सिपाही लाहौरके किलेपर कब हमला करते है, इसकी ओर पेशावर, अमृतसर, फिलौर और जालंदरकी हिंदी पलटने आँख लगाये बैठी थी । पर, जब मियोमीरके सिपाही निःशस्त्र कर दिये गये है और लाहौरका किला भी अग्रेज