पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१६

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पुरखाओं का मन उसी द्वेषसे भरा हुआ था, आज भी उसी भाव को उभाडना अन्याय और मूर्खता होगी।

अिस ग्रंथ में दिये गये सब प्रमाण लगभग अंग्रेज लेखकों के ही हैं। उनके अपने पक्ष के कर्तृत्व का चित्र जिस विस्तार तथा श्रद्धा से रंगा है उसी तरह दूसरे पक्ष को भी न्याय करना उनके लिये असम्भव हो गया होगा। हो सकता है, आवश्यक हुआ होगा, कि अिस ग्रंथ में वर्णित के अलावा दूसरे सभी प्रसंग अनुलेखित रह गये हो; इस ग्रंथ में सभी प्रसंग गलत तरीके से वर्णित हो। किन्तु यदि कोई देशभक्त अितिहासकार उत्तर भारत में जाय और उन लोगों के मुंह से, जिन्होंने उस प्रलय को देखा हो या उस युद्ध में शायद अग्रसर हो लडे हो, जानकारी प्राप्त करे, तो अब भी अिस महान् युद्ध के बारे में सच्ची और ठीक बातें सुरक्षित रखने के साधन मिल जाय । जल्द से जल्द यह उद्योग न किया जाय तो दुर्भाग्य से ये साधन हाथ से निकल जायेंगे। एक या दो दशकों में, उस युद्ध में हाथ बॅटानेवाली पीढी की पीढी, फिरसे कभी न लौटने के लिये कालकवलित हो जायगी, तो उन वीरों के प्रत्यक्ष दर्शन करने का आनंद तो दूर, अनके किये कामों का लेखा भी इतिहास में अधूरा रह जायगा। बहुत देरी होने के पहले ही, कोई देशभक्त इतिहासकार अिस हानि से बचने के लिये कटिबद्ध न होगा?

जिस ग्रथ में वर्णित महत्त्वपूर्ण घटनाओं तथा अितिहास के प्रमुख सूत्र के समान ही, छोटा से छोटे संदर्भ या उलेख और अत्यंत साधारण बात को प्रमाणित ग्रंथों के आधार से सिद्ध किया जा सकता है।

विराम करने के पहले मैं एक अिच्छा प्रकट करना चाहता हूँ, कि किसी भारतीय सज्जन की लेखनी से अत्यंत त्वरित १८५७ की कहानी जैसी लिखी जाय, जो देशभक्तिपूर्ण होने पर भी प्रामाणिक हो और बहुत विस्तारसे कही जाने पर भी सुसंगत हो; और उसे सुंदर कार्य के कारण मेरा यह नम्र लेखन जल्द ही विस्मृत हो जाय।

ग्रंथकर्ता