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अध्याय ३ रा ] ११७ [दिल्ली

दिल्लीका इतिहास प्रसिद्ध 'कष्मीरी दरवाजा' खोला गया और क्रांतिके नारे लगाते हुए ये स्वाधीनताके सैनिक दिल्ली के अन्दर प्रवेशित हुए। मेरठका दूसरा सेनाविभाग भी कलकत्ता-दरवाजेसे दिल्ली में प्रवेश करने की चेष्टा कर रहा था। पहले यह ढरवाजा बढ रहा;किन्तु सैनिकोके प्रहाग्मे कुछ ढीला पडा और धीरे धीरे खुलता गया। पूरा खुल जानेपर वहाँके 'पहरेदार' क्रांतीके नारे लगाते हुए सिपाहियोमें जा मिले। कलकत्ता-दरवाजेसे आये सैनिकोंने अपना रूख सबसे पहले दर्यागजमें बसे अंग्रेज़ो के बगलोकी ओर किया। किन्तु वे पहलेही आग से घू घू जल रहे थे। आगकी लपट से बचे अंग्रेज़ तल्वारकी झपटमे आ गए। पासही विदेशी दबाओ से पूर्ण तथा केवल अंग्रेज़ोको आसरा देनेवाला एक अस्पताल था। दर्यागजके अंग्रेज़ोको आसरा देने से वहाँ के बंगले जलकर खाक हुए यह प्रत्यक्ष देखकर भी इस अस्पतालने गोरो को छिपनेकी जगह थी,इस बातपर सिपाहियोका बिगडना ठीक ही था। इसीसे उन्होने सब बोतले तोड दी। रूग्णालयको तहसन हसकर मानो स्वय महाकाल ही हाथमें खड्ग लिए अंग्रेज़ोके खूनकी प्यास बुझानेके लिए अन्यान्य रूपोमे दिल्लीके घर घरमे घूमने लगा। हाँ, अब इस सेनाको एक झण्डेकी आवश्यकता पडी। किंतू ऐसी सेनाको कपडेके टुकडे का झण्डा क्या फवेगा? जहाँ कही गोरेका सिर मिला उसे भालेकी नोकपर खोंस दिया गया और फिर इन भय सूचक झण्डोको उछालते हुए यह सेना बडे वेगसे आगे बढती गयी। दिल्ली के राजमहल मे सिपाही और नागरिक जन बडी भीडमें इकट्ठे हुए ये और उन्होने 'बादशाह की जय!'के नारोंसे राजमहल को भर दिया था। कमिशनर फेजर जल्दी जल्दी राजमहल में जा रहा था। इतनेमे पास ही खडे नजुल बेगने उसके गालमें इत्यार खोप दिया। यह सूचना पातेही फेबरकी देहको कुचलते हुए सब क्रांतिवीर 'सीढी से ऊपर जाने लगे। फ्रेबरको रौंदते हुए सिपाही, ऊपर जाने लगे। फ्रेबरको रौंदते हुए सिपाही, ऊपरके मज़िलपर रहनेवाले जेनिंग्ज तथा उसके परिवारके कमरेकी ओर घुसे। अंदर से द्वार बंद करनेका प्रयत्न हुआ, तो सिपाहियोके धमाकेसे दरवाजा टूट गया और वे अंदर घुसे। वेनिग्ज,उसकी लडकी तथा एक मेहमान तलवारके घाट