पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४७

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अध्याय २ रा] ११३ • मेरठ पर छोड हिंदी सैनिक दिल्ली को चलने बने उनको मार्गहीम रोककर मुन डालना मिलकुल सहज था। किन्तु वहीं के मुली तथा सनिक अधिकारियोंमे पैदा हुई घबराहट, अनुशासन तथा समयकी सूझका न होना आदि बातोके लिए अंग्रेज इतिहासकारोको भी शरमस अपनी गर्दन झुकानी पडी। हिंदी बुडलका प्रमुख कर्नल स्मिथ, पता लगनेपर कि उसके मातहत सवारोंने विद्रोह किया है, अपने प्राणोंको बचाने के लिए भाग खडा हुआ। तोपखानका सेनाध्यक्ष तोपोको जमा कर उन्हें मोचपर खीच लाने के विचार में था तच तो विद्रोही सैनिक कर के दिल्ली के मार्गको तय कर रहे थे। फिरभी, सारी अंग्रेज सेना उनका पीछा करनेके बदले रातभर हाथपर हाथ धरे बैठी रही थी। ___ सत्य यह है कि मेरठने अचानक कातिकी चिनगारी पड कर वह धधक उठी तो अंग्रेजोके छक छट गये और वे बावले बने : दूसरे दिन तक इस अनोखे और अचानक विद्रोहके बारेमे वे कुछ तय न कर सके। इधर सैनिकोका कार्यक्रम पहलेसे निश्चित था। वह यो था:-पहले अचानक हमला किया जाय, बदिवानोको मुक्त कर अग्रेजोको कल किया जाय, फिर उस अचानक विद्रोहसे अंग्रेज धबडाये हुए हो, तर मेरठक लोग सब ओरसे लूटमार करते और आग जलाते अंग्रेजोको यह पता न लगने दें कि असलमे विद्रोहका केन्द्र कहाँ है। इससे उनकी • अक्ल काम न करेगी. वे अपनी जानकी खैर की टोहमे चूर होगे, तभी सैनिक दिल्लीके रास्ते चल पडे। यह कार्यक्रम बढे कौशलसे बनाया गया था। पहले, भारतके हृदय दिल्लीपर काबूकर तुरन्त इस सैनिकी विद्रोहको राष्ट्रीय युद्धका रूप दे देना और अग्रेजोकी इज्जत तथा रुबाबको धूलम मिला देना-यह था कातिकारी नेताओका टॉव, बडा लाजवाब था, इसमे क्या सदेह ? चतुरतासे यह कार्यक्रम बनाया गया था और ठीक उसीके अनुसार पूरा भी हुआ। अंग्रेजों को पूरा हाल मालम होनेके पहले, तार काटकर, मार्गों पर मोर्चादी कायम कर, और बदियों को मुक्त कर अत्याचारी अंग्रेज गासकोके खूनसे भूमि रगाते हए ये .दो हजार कातिवीर मिपाही अंग्रेजी खूनसे रगे अपने तलवारोंको हवामें फेंककर 'चलो दिल्ली, चलो दिल्ली, ' के साथ नारे लगाते हुए अपने मार्गको तय कर रहे थे।