पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४४

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प्रस्फोट] [द्वितीय खड ११ या १२ मईको वहाँ पहुँच जाते हैं; सब कुछ सिद्ध रहे", तुरन्त दिल्लीको एक हलकारा रवाना हुआ। * निदान १० मईके रविवार के सूरजकी पहली किरणें मेरठपर पड़ीं। १८५७ की इस सिद्धताकी अंग्रेजोंको बहुत कम खबर थी; मेरठके सिपाहियोंकी गुप्तमण्डलियोंकी बैठकों की तो उन्हे कानोकान भी खबर न थी; अन्य स्थानोंके सैनिकोंसे उनका जो आदान प्रदान होता था उसके विषयमें तो कुछ भी मालम न था । इतवारको सैनिक उठे और प्रतिदिनका अपना काम करने लगे। घोडा-गाडियॉ. गरमीसे बचने के लिए ठढी चीजोंका उपयोग, सुगंधित फूल, सैर, गाना बजाना सब कुछ ठीक रोज की तरह मजेसे. चल रहा था। कुछ थोडे अंग्रेजोके धरके नौकर एकाएक काम छोडकर चले गये; इसपर आश्चर्य करनेसे अधिक कुछ न किया गया। इधर सिपाहियोकी बैठकोंम, सामूहिक हत्याकाण्ड हो या न हो, इस विषयपर बहस मची हुई थी । २० वीं रेजिमेंट आग्रहके साथ कहती थी कि, "जब गोरे गिरजाघरमें पहुँच जाय तभी उठना चाहिये और हर हर महादेव का नारा लगाते हुए मुलकी और सैनिक अंग्रेजोंको, उनके परिवारके साथ, कल करते हुए दिल्लीको आगे चला जाय।” बहसके अन्तमें यही प्रस्ताव सर्वसम्मत हुआ। गिरजाघरके घंटोंकी घनघनाहटके सुनतेही अंग्रेज अपने बालबच्चोंके साथ गिरजाघरको चल पडे । इधर इस धूमधाममें मेरठ तथा आसपासके देहातोंसे हजारो लोग अपने पुराने शस्त्रोंको लेकर जमा हो रहे थे। देशकार्य के लिए मेरट के सभी जन सिद्ध हुए; फिरभी अंग्रेजोंके कानोंपर तक न रेगी थी। शामको पाच बजे प्रार्थनाके बुलावेका घटा घनधनाने लगा। हाँ, अपने पापोंका हिसाब देनेको करतार के सामने पहुँचने के पहले शायद अंग्रेजोंकी यह आखरी प्रार्थना थी ! किन्तु इधर सैनिकोंके शिविर में ' मारो फिरंगी को' के भीषण नारोंने वातावरण को भर दिया था। ___ सबसे पहले सैंकडों सवार देशभक्त धर्मवीरोको मुक्त करनेके लिए . * रेड पम्पलेट