पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४३

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अध्याय २ रा ] १०९ [ मेरठ

वदियोंका उत्साह दुगना हो गया। उनकी सैनोसे ऐसा ही कुछ मतलब निकलता होगा कि "जिस विदेशी गुलामीमे गौ और सुअर की चरबीसे चिकने काडतूसो को छूनसे इनकार करनेपर दस दस सालके सश्रम और उग्र दण्डको पाना है, इस गुलामी का पूरी तरह निःपात करेंगे; और केवल तुम्हारी ही नही, गत सौ वर्ष प्यारी मातृभूमिके पैरोंमें जकडी हूई पराधीनता की श्रृखलाओं को भी हम चकनाचूर कर देंगे।"

हाँ तो, यह सब प्रसग सबेरे हुआ था। अब सैनिको को अपने मनपर काबू रखना असम्भव हो गया, क्यो कि विदेशी शासकोंने इनके समक्ष केवल इस लिए उनके देशबंधुओंको कठोर दण्ड दिया कि उन्होंने मात्र अपनी स्वधर्म-रक्षाके हेतु आत्माभिमान प्रकट किया था। उस अपमान और लज्जासे लज्जित होकर मन ही मन क्रोधसे जलते हुए सैनिक अपने बारकोंमे लौट आये। जब योंही वे बाजारसे गुजर रहे थे तब गाँवकी स्त्रियाँ उन्हे फ्टकारती रहीं "देखो तो। उनके भाई वहाँ जेलमे सड रहे है और ये मक्खियोका शिकार करने योही रखड रहे है। थूः थूः ऐसे जीवन पर। व्यर्थ तुमने अपनी माँ को कष्ट दिये!" पहलेही उनका मन दुखी था; अपमानसे उनका अंतर जल रहा था; अब मार्गमे स्त्रियोंसे पडी इस मर्मभेदी फटकारसे वे चुप कैसे बैठ सकते थे? उस रातको सैनिक-शिबिरमें जगह जगह अनगिनत गुप्त बैठक हुई। ३१ मैई तक ठहरना अब दूभर हो गया। जब उनके साथी जेलमे सडते हो तब क्या, वे इधर हाथपर हाथ धरे बैठे रहें? जब गावँके बालक और औरतें 'ये है देश-द्रोही' कह कर उँगली उठाती हो, तब वे अन्य स्थानके सेनिकोंके विद्रोह करने तक कैसे रूके रहें? ३१ मैई तो तीन सप्ताह दूर था, फिर क्या, तब तक फिरंगियोंके झण्डेतले वे खडे हो जायँ? नहीं, नहीं। कल तो इतवारही है। तब कलका सूरज अस्ताचलको पहुँचनेके पहले देशभक्त बेटियोंकी वेडियाँ टूटनी चाहिए और साथ भारत-माताकी पराधीनताकी वेडियाँ भी चकनाचूर कर, स्वातंत्र्यका झण्डा फहराना ही चाहिए; इस निक्ष्चयके अनुसार, इस संदेशके साथ कि, "हम ............

  • जे. सी. विलसन.