पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४२

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कुछ कम हो गया:उन्हे वह बात जॅच गयी कि अपनी साधना परायी अग्रेजी राज्यसत्ताको जडमूलसे उखाड फेकना है;अपने नेताओंके इन उपदेशका उन्हे स्मरण हो आया और वे लौट गये। किन्तु यह बात सेनाधिकारियोतक पहुँच गयी और सर हेन्री लॉरेन्सने चालबाजीसे सारी रेजिमेन्टको निह्त्था कर दिया।

किन्तु मेरठमें कुछ दूसरे रूपमें एक सनसनीदार ऑधी उठी थी। सिपाही सचमुच काडतूसी मामलेसे चिढते हैं या नही इसे आजमानेके लिए अग्रेजोंने एक नई तरकीब ढूढ निकाली और उसके अनुसार ६ मईको एक धुडढलके सभी सैनिकोंको काडतूस अनिवार्य करनेका प्रयोग करनेकी ठानी । किन्तु नव्वेसंसे केवल पॉच मैनिक इन काडनूसोंको छूने- पर राजी हो गये। फिर उन्हें और एक बार काडतूस उठानेका आदेश दिया गया,तब तो सभीने इनकार कर दिया और अपने डेरेको लौट गये । मुख्य सेनापतिको स्वाढ सुनाया गया। उसकी आज्ञासे सभी सिपा- हियोको सैनिक न्यायालयके सामने पेश किया गया और पचासी सैनिकोंको आठसे दस साल तककी कडी सजा दी गयी।

यह दिल दह्लानेवाला प्रसग ९ मई के दिन हुआ। इन पचासी सैनिको को, गोरे पैदल सिंपाही तथा तोपखाने के बीच खडा किया गया था । हिंदी सिपाहियो को यह दृश्य देखनेको उपस्थित रहने की आज्ञा दी गयी थी।पहले इन पचासियोके गणवेश(बदां)उतारने की गोरो को आज्ञा हुई । उन्होने गणवेशो को चीर फाडकर उतारा, जिसमे ढण्डित सिपाहियोके हाथ खीचे गये:फिर सबको हथकडियॉ पहनायी गयी। जिन हाथोको अबतक शत्रुओंका कलेजा काटने के उपयुक्त्त तलवारे शोभा देती थी,उन्ही हाथोको अब भारी वेडियॉसे बदी बनाया । इस दृश्य को देखकर उपस्थित सब सिपाही चिढ गये,किन्तु कुछ दूर तोफखानेको सिध्द देखकर अपनी तलवारोंको उनके स्थानपर ही दबा रखा । फिर इन पचासी सैनिकों को दस दस सालकी कडी सजा होनेकी आज्ञा सुनायी गयी; उन धर्मवीरोको भारी वेडियो के बोझसे झुकाते हुए वदीगृहको दौडाया गया। भविष्यतू कालही इस बातको खोलेगा, कि वहॉ उपस्थित देशभक्त सैनि- कोने अपने धर्मवीर भाइयोको क्या क्या सैनें की थी। इन इशारोंसे