पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ७ वॉ] [गुप्त संगठन और किधर चली जाती इसकी किसीको कानोकान भी खबर न थी। हाँ, जो लोग इस विचित्र चिन्होंके आगमन की राह देखते थे, उन्हे ये चपातियों ठीक ठीक गूढ मत्र सुनाकर गुम हो जाती, किन्तु जिनके पास ये कातिदूतिकाएँ अचानक पहुँच जाती उनसे वे लवी चौडी बाते करती, और उन्हें अपना बना लेती। कुछ अक्लके दुश्मन सरकारी कर्मचारियोंने इन चपातियों को जब्त कर लिया और बार बार उन्हें तोड मरोड जॉचा। वे मानते थे कि इससे कुछ सुराग पायेंगे | पर खूबी यह थी कि 'बोल कहते ही किसी टोनहाई के समान अपना मुंह जोरसे बद कर लेती ! ये चपातियाँ आम तौरपर गेह या मकेके आटेसे बनती . थीं। उनपर कुछभी लिखा न रहता। किन्तु जो जानते थे उन्हें केवल छनेस ये चपातियाँ क्रातिसदेश पढाकर उत्साहसे भर देती! हर गावके चौकीदारके पास यह चपाती होती थी। पहले वह उससे एक टुकडा तोडकर खा जाता और बची हुई चपाती सबको 'प्रसाहके तौरपर बॉट देता। फिर जितनी चपातियाँ उस गावमें पहुँची हो उतनीही फिरसे उन जाती और ये ताजी चपानियों पासके दूसरे गाँववालोंको पहुँचायी जाती। वहाँ का चौकीदार फिर उसी तरीके में और गोवको भेज देता । इस तरह भारतीय क्रातिकी यह ज्वलन्त अग्निशलाका हर देहात, हर कसवेमे घुसकर क्रांतिकी अग्निसे समूचे देशमे आग जलाती गयी। हॉ, जल्दी करो! क्रातिदृतिके, जल्दी करो! भारतके सभी मुपुत्रोंको यह संदेश समझा दे, कि सबको स्वाधीन बनाने के हेतु अपने राष्ट्रने पवित्र धर्मयुद्धकी घोषणा की है ! चल, क्रातिदतिके, आगे बट ! दम-दिशाओंमे चक्कर काट ! काली गतमें भी न ठहर । सब ओर वातावरणको भर देनेवाली यह भयकर पुकार गॅजा दे, कि 'माता, समरागणको चल पडी है । उठो, सब उठो, और उसकी रक्षा करो'नगरके फाटक बद हों तो उनके खुलने तक खडी न रह कर आकाशमार्गसे उडकर अटर चली जा। मार्गमे पर्वतके दर्रे बहुत भीषण है क्गार क्या हुआ और ढाल है, जंगल डरावने, नदियोंका णनी असीम गहरा है। फिर भी, इन डरावनी रुकावटोंकी पर्वाह न करते हुए. यह प्रलयका सदेश लेकर तीरके वेगसे बढ । तेरी तेज गतिपर ही देश और धर्मके जीने मरनेका प्रश्न अवलद्रित है। इससे, जितने मील