पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२२

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ज्वालामुखी] . ' ९० [प्रथम खड की व्यवस्था देनी थी। इसलिए, सैनिक क्या सोचते थे इस की कल्पनातक न थी। आपसमे इस सेना-विभागोंने तय कर लिया था जो एक कंपनी करे वही दूसरी करेगी। यह समिति महत्त्वपूर्ण योजनाएँ बनाने तथा आवश्यक पत्रव्यवहार करने का काम करती थी। इस पद्धतिस निर्णय किया गया था, कि ३१ मई ही उत्थान का दिन सत्र सिपाही जाने । वह दिन रविवार का था। जिससे बहुतेरे गोरे अफसर अनायस गिरजाघर ही में पाये जाएँ। और ये सब बड़े अफसर अन्य अफसरोके साथ कल्ल होनेवाले थे। उसके बाद रवी की मालगुजारी के वसलसे भरा सरकारी खजाना लूटने का इरादा किया । कारागारोंको तोडकर सभी बदियो को मुक्त करने का निश्चय हुआ था। क्यो कि, उत्तरपश्चिम प्रातके बदियोसे ही लगभग २५०००की सेना खडी हो सकती थी। उत्थानके दिन ही शस्त्रागारो तथा गोलाबारूदके अंबारोपर दखल करना तय हुआ था: और जहाँ हो सके गढो और किलोको भी रोके रखना निश्चय हुआ था। यह थी कातिसगठनकी रचाई और समूची सेना उसमे हाथ बॅटाने को सिद्ध थी।" इस गुप्त सगठन को आर्थिक सहायता देने को लखनऊके साहकार, नानासाहब का खजाना, वजीर अली नकी खॉ, दिल्लीका राजमहल और क्रातिकारी बड़े नेता समर्थ थे। सैनिक जब उपर्युक्त आयोजनोंपर गुप्त मशविरा करते तब एक बिलकुल छोटीसी भूल के कारण किसी नरावम के द्वारा कुछ गुप्त बाते खुल गयी। तब सरकारी आज्ञा जारी हुई कि सिपाही विद्रोही होनेका सदेह जहाँ भी हो वहॉ समूची रेजिमेट तोडकर सैनिको को भगा दिया जाय । वाह जी ! यह तो बहुत अच्छा हुआ । नेकी और पर्छ पूछ ? क्यो कि कातिकी ज्वालाको फैलाने के स्वयंसेवक, प्रचारक सन्यासी, सरकारही स्वय दे रही है। कातिदलके नेताओने बडे परिश्रमसे भिन्न भिन्न रियासते, सर्वसाधारण जनता तथा सेना इस त्रयीका सुदर समन्वय कर रखा था। हॉ, मुलकी अधिकारी इसमें से छूट गये थे। किन्तु इन्ही हाकिमोंने आगे चलकर कातिकार्यमे क्या क्या महत्त्वपूर्ण कार्य किये थे इसकी सिलसिलेवार जानकारी देना आवश्यक है। नंबरदार-पटवारीसे लेकर ऊँची अदालतके न्यायाध्यक्षोंतक हिंदु मुसलमान सभी अधिकारी, वकील, कारिदे सबके सब इस कातिसगठनमे गुप्तरूपसे