पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१२

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सं. १९१७ में राजकोट जेल के कार्यालय में बैठ कर हॉलंड से प्राप्त। सस्करण की तीन प्रतिया टंकित (टाअिप) कर अस के अंदर होनेवाले दो चित्रों की भी प्रतियाँ अनुवादक ने बनायी थीं। तीस वर्षों के उथलपुथल के बाद भी उनमेंसे एकप्रति आज सुरक्षित है।

अिस ग्रंथ का तीसरा संस्करण

हिंदुस्थान सोशिआलिस्ट रिपब्लिकन असोसियेशन' के तत्वावधान में हुतात्मा सरदार भगतसिंहजी ने १९२९ के अन्त में, गुप्तरूपसे, छपाया था अब तक के संस्करणों पर लेखक का नाम 'आन अिंडियन नॅशनलिस्ट' था। भगतसिंहनी द्वारा प्रकाशित संस्करण पर वीर सावरकरजी का नाम दिया हुआ था। ईस का प्रचार भी ठीक हुआ। गुप्तरूपसे प्रचारित होने पर भी अच्छे मूल्यपर - काफी संख्या में लोगों ने पुस्तक खरीदी और सरकारने भी काफी प्रतियां जब्त की। १९३०-३१ में ' लॅमिंगटन रोड शूटिंग केस' नाम से प्रसिद्ध अंक बडा सनसनीदार मुकदमा बाम्बेमें चला था, जिस में प्रमुख अभियुक्त था जिस ग्रंथ का अनुवादक। ५७ के स्वातंत्र्यसमर का वितरण करने से राजद्रोह का प्रचार करने का एक अभियोग इस पर था। जब हाअिकोर्ट में सबूत के तौर पर अिस की एक प्रति पुलीस ने पेश की तो हर बहाने बॅरिस्टरों ने उसे पढने के लिये अवकाश माँगा और अन्हें मिला भी। १९३० के सत्याग्रह आंदोलन में इस के कुछ अध्यायों की साअिक्लोस्टामिल पर बनायीं नकलें बोरीबदर के सामने बेची जाती देखी गयी थीं। राजगोपालाचार्यजी ने भी गुप्तरूप से मगवा कर अिस को पढा है। आज भारत में कहीं कहीं मिलनेवाली प्रतियाँ भगतसिंहजी द्वारा ही प्रकाशित हुई पायी जाती हैं।

 १९४२ में पूज्य नेताजी सुभाषचंद्र बोसने 'आजाद हिंद सेना का संगठन किया। नेताजी को इस अर्थकी एक प्रति मलाया पहुंचने पर मिली थी। कोलालपुर के एक विक्रेताने