पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/११९

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अध्याय ७ वा] [गुम संगठन साहबसे सलाहकर अपने प्रातकी बागडोर हाथमे ले, युद्ध सामुग्री को जुटाने में व्यस्त था। इस धर्मयुद्धकी जड पटनेमे इतनी गहरी उतर गयी थी कि वह समूचा नगरही कातिदल का एक प्रमुख गढ बन गया था। स्वदेश तथा स्वधर्मके लिए मौलवी, पण्डित जमींदार, किसान, बनिया, वकील, विद्यार्थि सब पथोके लोक बलिदान करने को सिद्ध हुए जाते थे। इस गुप्त कातिसगठन का मचा-लक एक पुस्तकविक्रेता था । कलकत्तेमे तो अवध के नवाब नथा अली नकीखाने सैनिकोंमें विद्रोहकी बुआई अच्छी तरह की थी, अब फसल काटनेका अवसर ही ताक रहे थे। हैदराबाटकी मुस्लीम जमात भी जागृत होकर गुप्तरूपसे मशविरे कर रही थी। कोलहापूर-दरबारक चारो ओर क्रातिकी बयार बह रही थी। नजदीकमे होनेवाले राष्ट्रीय युद्ध में, अपने अनुयायियोंके साथ आकर राष्ट्रीय झण्डेके नीचे खडे होनेको पटवधन-रियासते तथा नानासाहबके ससुर सागलीके राजा सिद्ध थे। यहाँ तक कि सुदूर मद्रासमे १८५७ के प्रारंभमे भित्तिपत्रक लगे हुए थे, -'म्वदेशबधुओ तथा धर्मवधुओ उठो, सबक सब उठो! और काफिर फिर. गियोंको यहाँसे भगा दो। उन्होने प्रत्यक्ष न्यायनीतिको पैरोंतले कुचल डाला है और हमारा स्वराज्य छीन लिया है। हमारे देशको मटियामेट करनेपर फिरंगी तुले हुए हैं, तब इस असहनीय अत्याचारसे मुक्त होनेका एक मात्र उपाय है फिरंगियोंसे युद्ध पुकारना । यह स्वाधीनताका धर्मयुद्ध है, न्यायके लिए ठाना हुआ यही वह धर्मयुद्ध ! इस युद्धमे जो खेत रहेंगे व हुँतास्मा (गहीद) होगे; किन्तु इस राष्ट्रीय कर्तव्यसे दूर रहनेवाले कोई पापी दुरात्मा या कायर देशद्रोही हों तो उनके लिए नर्कके अग्निमुख जबडा खोले राह देख रहे है। बधगण ! तुम किसे पसद करते हो ? अभी निर्णय करो। अभी!" ___ भिन्न भिन्न प्रानोमे स्वतत्ररूपसे काम करनेवाले काति-सगठनकर्ताओको जोडनेवाले स्वतत्र प्रवासी प्रचारक भी गुप्तरूपसे काम कर रहे थे। जब तक बने पत्र कम लिखे जाते; और, जो भी लिखने पडते वे गूढ भापामे और बिना किसी व्यक्ति के नाम के ! कुछ ममय के बाद अंग्रेज हरएक पत्रको सदेहसे देखने लगे और उन्हे खोलकर पढने लगे। तब अपनी योजनाओ