पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१०९

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अध्याय ७ वॉ] [गुप्त संगठन Wwi नानासाहेबने पत्रोंकी वह बौछार की कि धीरे धीरे लखनऊके शासक नानासाहबके साथ कुछ सहमत हो गये। पूरबियोंके राजा.मानसिंहको भी बात डच गयी। सैनिकोंने अपना संगठन खडा करनेका उद्योग किया, जिसे लखनऊके शासकोंने सहायता दी। अयोध्याके खग्रास ग्रहण तक किसीसे उत्तर नहीं मिलता था; किन्तु उसके बाद हर एककी आँखे खुल गयी और उसने नानासाहबसे सबध जोडना जारी किया। फिर कारतूसोंका मामला बना, जनता बिगड उठी। फिर क्या था ? नानासाहबपर पत्रोंका सैलाव बढ आया!" * सं ११, __ इस प्रकार, स्वातत्र्ययुद्धका गुतं प्रचार चालू था। विशेषत: दिल्लीके दीवान-ई-खासमें कातिका वीज अच्छी तरह जड पकड रहा था। अंग्रेजोंने दिल्लीके बादशाहकी सल्तनत ही नहीं छीन ली थी, वरंच बाबरके वशकी 'बादशाह' उपाधीको भी रद करनेका निश्चय अभी अभी किया था। ऐसी दुर्दशामें दिल्लीके बादशाह तथा उसकी अत्यत प्रिय, चतुर 'एव दृढ बेगम जीनत महलने पक्का निश्चय किया, कि गतवैभवको फिरसे प्राप्त करनेका यह आखिरी मौका हाथसे न जाने दिया जाय । मरनाही है तो दिल्लीके बादशाह तथा उसकी बेगमकी शानको शोभा देनेवाले मौतको गले लगायेंगे, यह भी प्रण उन्होंने उसी समय कर लिया। इसी समय अंग्रेजों ___ * महीनों, नहीं सचमुच बरसोंसे, देशभरमे अपने षडयत्रका जाल ये जुन रहे थे। एक दरबारसे दूसरे दरबारको, विशाल भारतके एक छोरसे दूसरे छोर तक नानासाहबके दूत गुप्त रूपसे शायद गूट लिखा हुआ सदेसा और निमंत्रण लेकर, भिन्न जाति तथा धर्मके नरेशोंके पास पहुँच नाये थे। हॉ, मराठोंसे उन्हें अत्यधिक आशा थी......विद्रोहके प्रकट होनेके पहले देशभर में फैली जालसाजीमे नानासाहबका पूरा हाथ था इस चारेमे मेरे मनमे रंच भी संदेह नहीं है। देशके भिन्न भिन्न विभागोंमें भिन्न भिन्न गवाहोंके बयानोंके मेलसे नानासाहबकी जालसाजीकी बात तकेके क्षेत्रसे सत्यके क्षेत्रमे आ जाती है। के कृत इडियन म्यूटिनी 'खण्ड १ पृ. २४-२५ इसी दूतने नानाके मिन्न भिन्न दरबारोंके नाम भेजे पत्रोंकी बडी लबी तालिका दी हुई है।