चौदहवाँ परिच्छेद
सरला के चले जाने पर घर-भर में हलचल मच गई। इस विचित्र घटना का सभी पर भारी प्रभाव पड़ा। शारदा ज्यों-ज्यों इस बात को सोचती, त्यों-त्यों उसे एक अनोखा संदेह होने लगता। फिर यह सोचकर कि यह तो असंभव है, वह शांत होने की चेष्टा करती। पर वारंवार शशिकला के ये शब्द कि 'सरला बेटा! एक बार मा न कहेगी?' और सरला की चेष्टाएँ उसके मस्तिष्क में भिन्ना रही थीं। बहुत कुछ विरुद्ध विचारने पर भी उसके मुख से निकल पड़ता था―"क्या यही सरला की मा है? फिर सरला की आँखें और मुख मेरे स्वामी से क्यों मिलते है? क्या यही मेरी सखी मेरा सर्वनाश करनेवाली डायन है?" शारदा बहुत चंचल हो उठी।
उधर गृह-स्वामी अजब चक्कर में पड़े थे। यह कन्या है कौन? और मेरी गृहिणी पर इसकी ऐसी विरक्ति, प्रभाव और घृणा क्यों? मेरी स्त्री-ऐसी देवी तो बहुत कम होती हैं, फिर इस बाला का उसने क्या बिगाड़ा है? और उसके रोकने को ऐसे कातर अनुनय-विनय क्यों? सरला के