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तेरहवाँ परिच्छेद
"सरला बेटा! क्या हो रहा है?"
"कुछ भी तो नहीं मा!"
"कुछ भी कैसे नहीं, अच्छा बता, मैं कितनी बार आई, बोल?"
सरला तनिक लज्जा से बोली―"मैं एक चिट्ठी लिख रही थी।"
शारदा बैठ गई, फिर बोली―"किसे लिखी चिट्ठी?"
"सत्य को।"
"सत्य कौन?"
"आप सत्य को नहीं जानतीं। वह मेरा अत्यंत प्रिय पात्र है। बहुत दिनों तक उसके साथ खेलती रही हूँ आज उसकी याद आ गई, सो चिट्ठी लिखी है।"
"पर वह है कौन?"
"उन्हीं बाबा लोकनाथ के रिश्ते में हैं। ऐसे आदमी कम ही देखे गए हैं।"
"अच्छा, अब क्या करती हो?"
"कुछ नहीं, आज्ञा हो?"
"शशिकला बहन को जानती हो?"