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हृदय की परख

भूल क्यों नहीं गए? वह तुम्हारी थी कौन? उसने तो तुम्हें दो वर्ष हो गए, तब से एक बार भी याद नहीं किया।

"तुमने मेरा हृदय परख डाला, अच्छा किया। तुम्हारी वाणी चुभ गई है। तुम्हारी आत्मा इतनी रोती क्यों है? यह तो देखा नहीं जाता। सत्य! सच कहना, क्या यह सारा अभिशाप तुमने सरला पर ही लगाया है?

"तुम्हें देखने की बड़ी लालसा है, पर अब उसके पूरी होने में सुख नहीं है। वह पूरी न होगी। तुम्हें देखने को जी होता है, पर साहस नहीं होता। तुम यहाँ मत आना। मैं भी वहाँ तुम्हारे पास न आऊँगी। पर एक बार लिखना अवश्य―अपने जी की सच्ची बात लिखना। क्या तुम अशांति से छटपटा रहे हो? अपना दुख मुझे दिखाओ, संकोच मत करो। सरला निष्ठुर और चोर है, पर तुम तो उसे प्यार करते हो। कब लिखोगे? जब तक न लिखोगे, लौ लगी रहेगी। आँखें उधर लग रही हैं।

तुम्हारी दुलारी―

सरला"

पत्र डाक में डाल दिया गया।