पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/८८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६
हृदय की परख

है। आपका भ्रम व्यर्थ है। उस महापुरुष का इस अधम शरीर में लेश भी नहीं है।"

सरला बोली—"बहकाओ मत। जो तुम साधारण ही होते, तो इस समय कैसे आ जाते; यही कैसे ज्ञात होता कि तुम्हारे आने से मेरी आत्मा हरी हो जायगी। तुम मुझे भटकाओ मत। पहले मैंने एक ऐसे पथ पर पैर रक्खा था, जो बड़ा विशाल था। क्योंकि मैं जानती थी कि जिसे मैं चाहती हूँ, वह वहीं हैं; पर चाहना की वस्तु यहीं मिल गई है, तो उतनी दूर भटकने का काम ही क्या है? मैं तुम्हें पहचान गई हूँ। तुम हो तो वही। सच्ची बात कहने में मुझे डर नहीं लगता। तुम वही हो। मेरे मन ने, हृदय ने तुम्हारी ही पूजा की थी। अब इस अधम शरीर को भी सेवा करने दो। पूजा के पीछे सेवा का ही तो नंबर है।" ऐसा कहकर सरला ने आतुरता से युवक का हाथ पकड़ लिया।

युवक के शरीर में बिजली दौड़ रही थी! उसने गद्गद् कंठ से कहा―"कैसा आश्चर्य है देवी! इस बात पर सहसा विश्वास नहीं होता। मेरा पाषाण-हृदय और उस पर यह पुष्प! मेरा तो हृदय काँप रहा है। लोग कहते हैं, संसार में लालसा पूरी होना दुर्लभ है, तो क्या मेरे ही लिये यह बात झूठ साबित होगी?"

सरला बोली―"झूठ क्यों होगी! तुमने १५ वर्ष से जो