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हृदय की परख

फिर भी आप उसे बहुमूल्य बना सकती हैं।" यह कहकर उसने एक अगम्य तृषित और विषाद-भरे नेत्रों से सरला को देखा। सरला भी अब आपे में नहीं थी। क्षण-भर उसने युवक की ओर देखा। वह कुर्सी से खिसक पड़ी। उसके मुख से अनायास ही निकल गया―"मेरे प्राण-रक्षक गु―"। इसके बाद उसका मुख बंद हो गया। आगे कुछ कहने की ज़रूरत ही क्या थी! दोनो हृदय एक हो गए थे।