युवक ने कहा―"उन पूज्य देव का मुझे दर्शन लाभ हो सकेगा?"
"नहीं, सैकड़ों वर्ष बीत गए, अब वह इस पाप-भूमि पर नहीं हैं।" युवक ने अकचकाकर कहा―"यह कैसे हो सकता है, देवी! वह तो आपके पूज्य गुरुवर्य हैं न?"
"हाँ, उनका स्वरूप तो कभी देखा नहीं, पर विश्वास है, कभी-न-कभी उनके दर्शन अवश्य होंगे।" यह कहकर सरला ने इस अभिप्राय से युवक की ओर देखा कि उसे उसकी बात पर प्रतीति हुई या नहीं। युवक के मुख पर आश्चर्य के चिह्न विराजमान थे। सरला बोली―"अब वह इस पृथ्वी पर नहीं हैं, किंतु उनका हृदय वसंतपुर में उनकी समाधि में उनके ही हाथ से लिखा हुआ रक्खा है। उसी के द्वारा मुझे सब कुछ मिला है।" युवक उठ खड़ा हुआ। उसने उत्तेजित होकर कहा―"वसंतपुर के समाधिस्थ महात्मा की बात कहती हो?"
"हाँ।"
सरला ने देखा, युवक के नेत्रों में एक विचित्र ज्योति छा गई है। युवक ने फिर कहा―"वहाँ तो अत्यंत प्राचीन भाषा का पुस्तक-भांडार है। क्या आपने उसे पढ़ लिया है?"
सरला को भी आश्चर्य हुआ। वह बोली―"हाँ, ५ वर्ष की अवस्था से १८ वर्ष की अवस्था तक निरंतर परिश्रम