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हृदय की परख

उसने कहा―"तुम्हारा हृदय उस शिखर पर है, जहाँ कोई ही पहुँचता है। वासना का कीड़ा कहाँ तुम्हारी बराबरी कर सकता है।"

सरला से न सुना गया। उसने विकलता से शारदा की गोद में मुँह छिपा लिया। कुछ ठहरकर उसने कहा―"मा! ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा हृदय खिसका पड़ता है। कहीं मेरे जीवन का प्रवाह पथ-भ्रष्ट होकर मरुस्थल में लुप्त न हो जाय!"

शारदा बोली―"ईश्वर न करे कि ऐसा हो, कीड़े-मकोड़ों और चींटियों को भी उसका बल है। वही क्या हमारी आत्मा को बल न देगा?"

सरला ने देवा, हाय! इसके हृत्पटल पर मेरा कैसा चित्र बन गया है। उसके मन में आया, एक बार खोलकर सब कह दूँ, पर उससे कुछ भी नहीं कहा गया। उस समय शारदा भी बहुत उदास हो गई थी। उसने हाथ जोड़ नेत्र बंद- कर कहा―

"तेजोऽसि तेजो मयि धेहि।
बलोऽसि बलं मयि धेहि।
ओजोऽसि ओज मयि धेहि।"

सरला ने शांति-पूर्वक इस उपदेश को हृदयंगम किया। उसने विनय-पूर्वक कहा―तथास्तु।