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सातवाँ परिच्छेद

भाँति उसे छाती से लगा लिया। बड़ी देर बाद धीरे-धीरे सरला ने अलग होकर देखा, शारदा की आँखें लाल हो आई हैं, और उनकी धारा रोके नहीं रुकती।

सरला भी चुप थी। तनिक ठहरकर शारदा बोलीं― "मैं देखती हूँ, मेरे दुःख की औषध मिल गई है। अब मेरा दुःख दूर होगा। सरला बेटी! मेरे नेत्र जिसके प्यासे हैं, तेरे मुख में उसी का रस है, तुझे देखकर ही अब मैं जीऊँगी, और मरती बार सुख से मरूँगी।" इतना कहकर उन्होंने सरला की ओर निर्निमेष दृष्टि से देखा। सरला भी उन्हें देख रही थी। शारदा ने उसके दोनो हाथ पकड़कर कहा― "सरला! तू मुझे क्या कहकर पुकारा करेगी?" सरला ने व्यग्रता से पूछा―"क्या कहकर पुकारा करूँ?" कुछ क्षण शारदा ने उसकी आँखों में आँखें गड़ाए रखकर कहा― "तूने कहा था न कि मैं पूर्व-जन्म की तेरी मा हूँ, मुझे मा कहकर ही पुकारा कर।"

सरला के नेत्र स्थिर हो रहे थे। उसने रुँधे कंठ से कहा―"मा!"

"बेटा! छौना!" शारदा के मुख में अनायास ही निकल गया। सरला फिर शारदादेवी की छाती से जा लगी। उस क्षण दोनो का जो बंधन बँधा, उससे दोनो कृतकृत्य हो गईं।