चित्र जिस पुरुष का था, उसकी अवस्था २६ वर्ष के लगभग होगी। यह चित्र तैल का बना हुआ था। पर ऐसा बना था, मानो काग़ज़ से मूर्ति निकल आना चाहती है। जिस पुरुष का यह चित्र है, उसका मुख सचमुच ही ऐसा हो, तो निस्संदेह उसकी छवि अनोखी ही होगी । उस पर लिखा था-'भूदेव चित्रकार' । सरला सोचने लगी- आखिर यह भूदेव चित्रकार है कौन ? उस चित्र में न- जाने कैसा जादू था कि सरला ज्यों-ज्यों उसे ध्यान से देखती,त्यों त्यों उसे तृप्ति न होती थी। यह चित्र बहुत पुराना था। उसने अनुमान किया, यदि आज यह पुरुष जीता होता, तो५० या ५५ वष का होता। ईश्वर की माया अपार है।
उस चित्र के लिये सरला के प्राण भी व्याकुल होने लगे। उस यह पुरुष कौन है, यह जानने की लालसा हो गई। यही बात पूछने के लिये वह शारदादेवी के पास गई;पर उनका मुख हाय ! ऐसा करुणाकर हो गया था कि सरला से कुछ पूछते न बना।
सरला ने मधुर स्वर से कहा-"माननीया देवी,मैंने आपके घर में आकर आपको अन-जाने किस अज्ञात विषाद में डाल दिया है। मुझे कुछ भी नहीं सूझता कि आपके कष्ट में मैं कैसे सम्मिलित होऊँ। आपके कष्ट को जान पाती,तो....."
सरला की बात मुंह में ही थी कि शारदा ने पगली की