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पाँचवाँ परिच्छेद
"हाँ|"
"नहीं चलूंगी।"
"क्यों "
"क्यों क्या ? उसमें मेरा क्या है ? मैं जहाँ प्रसन्न हूँ वहीं रहने दो । कुछ मेरे जाने से तुम्हारा सुख तो बढ़ ही न जायगा ? मैं तुम्हारी वैसी आवश्यक सामग्रो होती, तो १६ वर्ष से याद न आती ? मेरे बाप के साथ मुझे भी भुला दो।"
"नहीं।"
"तुझे मेरी ममता कुछ नहीं है ?"
सरला ने स्थिर होकर कहा-"नहीं।"
अब रमणी क्षण-भर भी न ठहरी । वह उस अपमान को लेकर उलटे पैरों चल दी । सत्य और सरला दोनो ने उसे कुछ जल-पान करने को कहा; पर उसने न एक शब्द कहा, और न उनकी बिनती ही सुनी ।