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पाँचवाँ परिच्छेद

वह एक बार भी अपनी दुधमुॅंही बालिका को याद न करती?"

रमणी ने ठंडी साँस भरकर कहा-"भाग्य में यही लिखा था। जब तू ७ दिन की थी, तभी तेरे बाप से भ़गढ़ा हो गया था। उस दिन आँधी-पानी का ज़ोर था। उसी समय तेरा बाप तुझे घोड़े पर लेकर चल दिया था। तब से आज तक उसकी सूरत नहीं देखी ।"

सरला ने देखा, रमणी का चेहरा एक कटु विषाद में डूब गया है। उसकी आँखों में आँसू भर रहे हैं ।

सरला बोली-“यह क्या ! पिता अब तक तुम्हें नहीं मिले, तो वह गए कहाँ ?"

रमणी-"हाँ, तब से आज तक उनका पता नहीं लगा कि कहाँ हैं। पर तेरे मुख में उनकी छाया देखकर वे सारी बातें हरी हो गई हैं। इस बीच में मैं बहुत ढूॅंढ़ चुकी, पर प्रयत्न सफल नहीं हुआ।"

इतना कहकर उसने अपने आँसू पोंछ डाले । सरला ने तनिक विस्मय से कहा-"पर आपके शरीर पर तो मैं सुहाग के पूरे चिह्न देखती हूँ।"

इस बात से रमणी लज्जा से कुछ सिकुड़-सी गई । उसके ललाट पर पसीना छा गया। उसने सामने की भीत पर नजर डालते हुए कहा- "पर इसमें मुझे कुछ भी सुख नहीं है । यह न होता, तो ही ठीक होता।"