बोसवाँ परिच्छेद सरला के साथ ही हमारी कहानी समाप्त हो गई है। आगे कुछ कहने को लेखनी उठती भो नहीं ; पर हमसे शारदा और सुंदर बाब की खबर लिए विना नहीं रहा जाता । जब से सरला उन्मत्त दशा में अवसर पाकर घर से निकल भागी, शारदा दिन-रात रोती हैं। वह पागल-सी हो रही हैं, न खाने का ध्यान न नहाने का। बैठी हैं तो बैठी रहती हैं, और पड़ी हैं तो पड़ी । घर शोभा. विहीन और मलिन हो रहा है। कुछ सोचकर सुदरलाल ने विदेश भ्रमण की ठहराई । एक शुभ दिन दोनो चल दिए। रास्ते में अनेक नगर और तीर्थ स्थान देखते हुए वह लाहौर पहुँचे । देखने योग्य सब स्थान देख डाले । एक दिन संध्या-समय सुदर बाबू एक मजदूर के सिर पर भोजन की सामग्री रखाए बाजार में से जा रहे थे, और एक स्थान पर, सड़क से कुछ हटकर, कुछ लोग गोल बांधे खड़े थे। कौतूहल-वश सुदर बाबू ने सोचा, देखें तो क्या है । कुछ और आगे बढ़कर उन्होंने देखा--एक अधेड़ पुरुष उस भीड़ के बीच में खड़ा हुआ कुछ वेच रहा है। उसकी
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