१५२ हृदय की परख "तुम्हाग जी अच्छा नहीं है न ।" "समझो, इससे अच्छा हो जायगा ?" "हाँ" “लाओ खाऊँ । देख कैसा औषध है ।" यह कहकर सरला सुदरलाल की ओर देखकर मुस्किरानं लगा। शारदा ने देखा, उस के नेत्रों की सरलता फिर उड़ गई है। उस समय सुदरलाल का वहाँ आना ही बुरा हुआ। सुदर बाबू ने दवा तैयार करके दो । औषध हाथ में लेते ही सरला ने उसे धरती में दे मारा, और फिर आँखं तरेरकर कहा-"इतनी-सी औषध, तुमने क्या मुझे यों ही समझ रक्खा है ? ओषध मैं न खाऊँगो।" यह कहकर सरला उधर से मुँह फेरकर पड़ रही। सुदरलाल चुपचाप शारदा का मुंह ताकने लगे। शारदा ने अत्यंत करुण दृष्टि से देखकर कहा-"इस वक्त और कुछ देर आप न आते, तो ठीक होता। मैं यी हूँ। आप जाकर सो जाइए । सावधान देखते ही दवा दे दूंगो।" सुदर बाबू चले गए। शारदा चुपचाप सरला की चारपाई पर श्रा बैठी। देखा, 'सरला सो रही है। उसने विचारा, चलो अच्छा हुआ। सोने से कुछ शांति मिलेगी। पर शारदा ने देखा, सोती हुई भी सरला शांत नहीं है। कभी मुस्किराती है, और कभी उसका मुख भीषण हो उठता है। शारदा को वह सारी रात जागते बीती ।
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