पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हृदय की परख पहला परिच्छेद रात बड़ी अँधे। थी । ११ बज चुके थे, बादल गरज रहे थे, विजली कड़क रही थी, और मूसलधार वर्षा हो रही थी। हाथों हाथ नहीं सूझना था, चारो ओर सन्नाटा छा रहा था । लोकनाथसिंह अपने खेत के पासवाले झोपड़े में चुपचाप बैठा हुआ गुड़गुड़ी पी रहा था। अचानक उसे घोड़े की टाप के शब्द सुनाई दिए। पास ही पाले में मिट्टी का एक दिया टिमटिमा रहा था । उसको बत्तो एक तिनके से उसका- कर, उसने आँखों पर हाथ रखकर अंधेरे में देखा कि ऐसे बुरे वक़्त में कौन घर से बाहर निकला है। थोड़ी देर बाद किसी ने उसका द्वार खटखटाया । लोकनाथ ने बाहर आकर देखा, एक सवार पानी में तर-बतर खड़ा है, और उसके हाथों में एक नवजात बालक है । बानक दो ही चार दिन का होगा। सवार ने बूढ़े से कहा-"महाशय ! क्या आप कृपा करके मेरी कुछ सहायता करेंगे । आप देखते हैं, मैं बिलकुल भीग गया- रात भी बहुत बीत गई है। कुछ ऐसी ही घटनाएं हो गई, जिससे इस बालक को ऐसे कुअवसर पर बाहर ले आना पड़ा । क्या मापसे कुछ आशा करूँ?"