पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१४१

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सत्रहवाँ परिच्छेद १३६ हो गए ? सरला ने फिर कहा-"अब मैंने यही निश्चय कर लिया है। यह हमारे लिये अच्छा ही मार्ग है।" विद्याधर ने कुछ धीमे स्वर से कहा- "मेरी भी यही अभि- लाषा है। पर देखता हूँ, परमात्मा यह कार्य होने न देंगे। कई विघ्न सामने हैं।" सरला का मुंह सूख गया। उसने कहा-'इसके क्या अर्थ ? मैं तो कोई विघ्न नहीं देखती। मेरी अनिच्छा ही विघ्न थी, सो वह अनायास मिट ही गई।" विद्याधर ने अत्यंत मधुर स्वर बनाकर कहा-मैं क्या करूँ ? प्रथम मेरे पिता ही विघ्न कर रहे हैं। उन्होंने लिखा है कि तुम चले आओ, व्याह ठोक कर लिया है।' सरला इस वाणी की चोट को सह न सकी। उसने मत- वालों की तरह एकटक विद्याधर की ओर देखकर कहा- "व्याह ठीक कर लिया गया है ? पर तुम तो प्रथम कहते थे कि वह हमारे इस प्रस्ताव से सहमत होंगे।" "मुझे ऐसा ही विश्वास था, पर उन्होंने सब कुछ सुन लिया है।" "क्या सुन लिया है ?" "यही जो आपकी जन्म-संबंधी नई घटना प्रकाशित सरला का मुख क्रोध, लज्जा और विवशता से एकदम विवर्ण हो गया।