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सत्रहवाँ परिच्छेद

हो गई है, उसे क्या करे? मैं उदास रहना नहीं चाहती, पर रहती हूँ।"

शारदा एकटक उसकी ओर देखकर बोली―"बीती बात को भूलने से दुःख बहुत कुछ कम हो सकता है।"

सरला ने धीरे से कहा―"बीती बातें होतीं, तो भी एक बात थी।"

शारदा ने चौंककर कहा―"बीती नहीं, तो और क्या है?"

"मेरा वर्तमान के समान भविष्य भी अंधकार में ही है।"

शारदा ने अत्यंत स्नेह से कहा―"बेटी, तू तो बड़ी समझ- दार है। दुनिया में अकेला किससे रहा जाता है। इसी से मैंने कहा था कि विद्याधर बहुत योग्य युवक है। उससे तेरा व्याह हो जाय, तो तुझे बहुत कुछ सुख मिल सकता है। पर तू विचार-ही-विचार में रहती है। अच्छा, यह तो बता, तू व्याह से डरती क्यों है?"

सरला ने अत्यंत शांति से कहा―"निश्चय कर लिया है कि व्याह कर लूँगी।"

इस उत्तर से शारदा बड़ी प्रसन्न हुई। वह कुछ कहना ही चाहती थी कि सुंदरलाल एक पत्र लिए आ पहुँचे। उन्होंने सरला कोपत्र देकर कहा―"सरला, विद्याधर तुझसे भेंट करने आए हैं।" सरला ने पत्र पर एक दृष्टि डाली, तो देखा कि उस पर किसी अपरिचित व्यक्ति के हस्ताक्षर हैं। वह सत्य के पत्र की प्रतीक्षा कर रही थी। उसे बिना खोले ही