११. प्राकथन कर सकते, तो अवश्य वे महान् पुरुप बन जाते । किंतु निश्चय ही हृदय का सुंदर होना पाप नहीं है। इसीलिये अपराधी को अपराधी ठहराने में बड़े भारी विचार-विवेचन -की आघश्यकता है । भगवान् बुद्ध कदाचित् ऐसे ही पारखी थे । उनका सिद्धांत था कि अपराध हुआ है, इससे प्रथम यह देखो कि अपराध क्यों हुअा है । हमारे पाठक इस पुस्तक में कुछ पात्रों को ऐसा ही अपराधी पावेंगे, जिन्हें वे घोर अपराध का पात्र समझकर भी कदाचित् सहानुभूति की दृष्टि से देख सकें । यदि मेरी यह धारणा सत्य हुई, तो मैं अपने प्रयत्न को कुछ अंशों में सफल समदूंगा। मैं कोई साहित्य-सेवी या लेखक नहीं । मुझे यह भी ज्ञान नहीं कि उपन्यास में क्या-क्या गुण या लक्षण होने चाहिए, और यह पुस्तक उपन्यास कहाने योग्य भी है या नहीं। साथ ही यह मेरा प्रथम प्रयास है । इसलिये पुस्तक अापके हाथ सौंपते हुए मेरा हृदय संकु- चित होता है । तथापि मैं प्रार्थना करता हूँ कि इसे एक साधारण कहानी-मात्र समझकर भी यदि आप प्यार करेंगे, तो मैं अापका विशेष कृतज्ञ होऊँगा। एक बात और । इस पुस्तक की सब मेरी पूंजी उधार की है। मेरे आदरणीय मित्र बाबू सूर्यप्रताप ने जिन भावों की मुझे माँकी दिखाकर मुग्ध कर दिया था, उन्हीं को एकत्रित करने-मात्र का मुझे यश है। इससे अधिक के अधिकारी मेरे मित्र हैं । विनीत- श्रीचतुरसेन वैद्य
पृष्ठ:हृदय की परख.djvu/१३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।