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चौदहवाँ परिच्छेद

गृह-स्वामी ने अत्यंत शून्य दृष्टि से चारो ओर देखा। इसके बाद वह खाट पर आ बैठे। घड़ी खट-खट कर रही थी। समय देखकर उन्होंने चम्मच में दवा लेकर उसके मुँह में डाल दी। दवा पीते ही रोगी फिर कराहने लगा। स्वामी ने पूछा―"क्या हाल है?" पर जवाब कुछ नहीं। वह फिर मूच्छित हो गई। बीच-बीच में मुँह से कुछ निकल जाता था, जिसका एक तो कुछ अर्थ ही न होता था, फिर जो कुछ अर्थ वह समझते थे, उससे उनका हृदय दग्ध हो जाता था।

डॉक्टर साहब आ गए। रोगी को अच्छी तरह देखकर वह बोले―"अफ़सोस है , ज्वर के साथ ही रोगी के प्राण-नाश की संभावना है! अब इसके बचने की कोई आशा नहीं।"

"अभी बक रही थी।"

डॉक्टर ने उपेक्षा से कहा―"हाँ।"

"ज्वर कब उतरने की संभावना है?"

"आज ४ बजे प्रातःकाल।"

गृह-स्वामी जोर से रो उठे―"तो क्या अब सिर्फ़ ६ घंटे ही मेरा-इसका साथ है?"

सुंदरलाल से यह न देखा गया। वह बाहर चले आए। डॉक्टर ने भी ढाढ़स देकर अपनी राह ली। धीरे-धीरे रात गंभीर होने लगी। सब सो गए। रोगी के पास शारदा, सुंदरलाल और गृह-स्वामी बैठे हैं। गृह-स्वामी ने आग्रह