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हृदय की परख

ओह! कितना आँधी-पानी था। तुम कहाँ थे?―पानी।" स्वामी ने पानी माँगा। जल्दी से शारदा ने पानी दे दिया। शारदा को देखते ही शशि ने कहा―"यह भी आई है?"

"यह कौन हैं, जानती हो?"

"सरला! सरला! इसे तुम भूल गए?"

गृह-स्वामी उठने लगे, पर शशि ने बिजली की तरह लपक- कर उन्हें पकड़ लिया।

"अब न जाने दूँगी।"

"जाता नहीं, डॉक्टर को बुलाता हूँ।"

"वह तो आ गई। अरे, कहाँ गई―"यह कहकर वह अपने चारो ओर देखने लगी। उस समय गृह-स्वामी के चित्त की विचित्र दशा थी। उनके मुख पर घोर दुःख के साथ एक कठोर अलक्षित भाव छा रहा था। इशारे ही से उन्होंने सुंदर बाबू से डॉक्टर बुला लाने के लिये कहा। वह चले गए। उनके पीछे ही शारदा भी कमरे से निकल गई।

निराला पाकर गृह स्वामी बोले―"देखो, तनिक सावधान हो, कुछ बात पूछता हूँ।" रोगी ने हाथ झटककर कहा― "उसी ने भेजा होगा! हटो!" इतना कहकर उसने चादर उठाकर फेक दी, और वह खाट पर बैठ गई। गृह-स्वामी ने बड़ी मुश्किल से उसे पकड़कर खाट पर लिटाया; पर उसका बल देखकर वह चकित हो गए। थोड़ी देर के लिये शशि फिर मूर्च्छित हो गई।