ही शशिकला बोली―"यह मुझे खाती थी, मुझे दाँत दिखा- कर डराती थी।"
गृह-स्वामी आगे बढ़कर खाट पर जा बैठे, और शशि का ओढ़ना ठीक करके उसकी ओर देखकर बोले―"कैसी तबियत है?"
"तुम आ गए? आओ, कब आए?"
"पहचानो तो, मैं कौन हूँ?"
"सूरत तो वैसी नहीं है, पर हो वही।"
"कोन?"
"भूदेव।"
गृह-स्वामी के ललाट पर पसीना आ गया। वह माथे पर हाथ धरकर बैठ गए। भूदेव कौन? वही हमारा प्राण- प्यारा मित्र? सुंदरलाल भी पास ही चुपचाप खड़े थे। भूदेव का नाम उन्होंने भी सुना। दोनो के हृदय परसों की घटना से उद्विग्न हो रहे थे। इस प्रलाप की बात से उनकी विचार की तरंगें हिलोरें लेने लगीं। हठात् एक विचार गोली की तरह उनके कपाल में आकर घुस गया। कुछ ठहरकर वह बोले―"कौन भूदेव?"
शशि ने स्वामी का हाथ पकड़ लिया, और उसकी ओर देखकर कहा―"उस दिन की बात क्षमा कर दी?"
"किस दिन की बात?"
रोगी ने अधीरता से कहा―"भूल गए? भूल गए