देखने के बाद उन्होंने एक हल्की-सी साँस ली, और कहा― "महाशय! भयानक सांघातिक ज्वर है। रोगी का जीवन संकट में है। अत्यंत सावधानी से चिकित्सा कीजिए।"
इतना कहकर और औषध आदि की व्यवस्था करके वैद्यजी चले गए। घर-भर में घोर उदासी छा गई। कन्या भगवती, जिसका विवाह था, रोती-बिलखती हुई मा के घर में घुस आई। शारदा की रात-भर आँख न लगी थी, पर इस समय कुछ झपकी-सी लग गई थी। ज्यों ही उन्होंने जागकर यह समाचार सुना, वह सखी के घर में आ बैठीं। विवाह का आनंद-मंगल विषाद-सागर में डूब गया। कल ७ बजे से इस घर की कुदशा आई है। रोगी की दशा में कुछ भी परिवर्तन न हुआ। संध्या समय वैद्यजी ने आकर फिर नाड़ी देखी। कमर से बाहर आकर उन्होंने कहा― "क्षण-क्षण में रोगी की दशा बिगड़ रही है। आप प्रातःकाल बारात को तुरंत बिदा कर दें। रोगी के अनिष्ट की ही संभावना है। मैं औषध देता हूँ। प्रत्येक घंटे पर देते रहिए।"
वैद्यजी की बात सुनकर गृह-स्वामी के हाथ-पैर फूल गए। सारी रात बैठे-बैठे बीत गई, पर रोगी को होश नहीं या बैठी हुआ।
प्रभात ही सिविल सर्जन डॉक्टर को बुला भेजा। नगर के और भी सब वैद्य और प्रतिष्ठित डॉक्टर बुलाए गए।