जिसका एकरारनामा कम्पनी अभी मुझे लिखदे; नहीं तो यह सारा भेद मैं अभी सिराजुद्दौला के आगे खोलकर सभोंको आफ़त में डाल दूंगा।"
यह सुनते ही अंग्रेज़ों के छक्के छूट गए और उनलोगों ने समझ लिया कि,—'एक तो हमलोगों के अत्याचार से यह बिचारा पिस ही गया है, दूसरे अब यदि इसे राजी नहीं करलेते तो यह ज़रूर नव्वाब के आगे सारा भेद खोल देगा और हम लोगों को बड़ी भारी बला में फंसावेगा।' पर उतना रुपया अमीचन्द को देना अंग्रेज़ों को कब स्वीकार हो सकता था, इसलिए उन लोगोंने अमीचन्द को राज़ी करने के लिये काम बनाया और दो रंग के काग़ज़ों पर दो तरह का अहदनामा लिखा गया। लाल काग़ज़ पर जो अहदनामा लिखा गया, उसमें तो पांच रुपए सैकड़े अमीचन्द को देने का इकरार था, किन्तु जो अहदनामा सफेद काग़ज़ पर लिखा गया, उसपर उन बेचारे का कहीं नाम ही न था! ये दोनों काग़ज़ जब दस्तख़त होने के लिए कौंसिल में पेश किए गए तो अडमिलर अर्थात् अमीरुलबहर ने लाल काग़ज़ पर हस्ताक्षर करना स्वीकार नहीं किया, तब कौंसिलवालों ने उसका दस्तख़त आप बना लिया।[१]
निदान क्लाइव तीन हज़ार लड़ाके और नौ तोपें लेकर कलकत्ते से चला और सिराजुद्दौला भी पचास हज़ार सवार, प्यादे और चालीस तोपें लेकर पलासी के मैदान में आधमका; सैकड़ों फ़रासीसी भी उसके साथ थे। तेईसवीं मई को प्रातः काल उसी जगह लड़ाई प्रारम्भ हुई और सिराजुद्दौला ने बिजय पाई। फिर चौबीसवीं को जब कम्पनी की सेना में लड़ाई के बाजे बजने लगे, मीरजाफ़र ने अपनी सेना को लड़ाई के लिए तैयार होने से रोक दिया। हायरे, स्वार्थपरता!!! और धिक विश्वासघात!!!
अपने सेनापति मीरजाफ़र का यह ढंग देख सिराजुद्दौला बहुत ही घबराया और उसने मीरजाफ़र को बहुत कुछ समझाया, पर जब उसने किसी तरह भी लड़ने की सलाह न दी तब सिराजुद्दौला ने अपने सिर से ताज़ उतार कर उसके पैरों पर रख दिया और
- ↑ इस पर राजा शिवप्रसाद यों लिखते हैं कि,—"मानो फार्सी मसल पर काम किया—गर ज़रुरत बवद ख़ां बाशद।"