पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/७२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
६८
(चौदहवां
हृदयहारिणी।



भेजकर अंगरेज़ों को यों धमकाया कि,-'तुम कलकत्ते में किले की मज़बूती मत करो;'इस बात पर भी अंगरेज़ों ने कुछ ध्यान न दिया। तब तो सिराजुद्दौला का खून जोश में आया, उसके क्रोध की आग भड़क उठी और उसने लड़ाई का बहुत अच्छा बहाना पालिया। पहिले उसने कासिमबाजार वाली अंगरेजों की कोठी जप्त करली और फिर उन्हें कलकत्ते के किले में जा घेरा। वहां पर उस समय गोरे सिपाही सौ भी न थे और किले के बचने की भी कोई आशा न थी। यह उपद्रव देख, बहुत से अंगरेज़ तो ड्रेक साहब गवर्नर के साथ जहाज और किश्तियों पर सवार होकर वहां से निकल भागे और जो बिचारे बेखबरी में किले के अन्दर रह गए थे, वे दूसरे दिन कैद होकर सिराजुद्दौला के सामने लाए गए, उनमें किले के अफ़सर हालवेल साहब भी थे, जिनकी मुश्के बंधी हुई थीं। सिराजुद्दौला ने उनकी मुश्के खुलवा दी और कहा,-'खातिर जमा रक्खो, तुम्हारा ज़रा भी नुकसान न होने पावेगा;' किन्तु रात के समय जब गोरे कैदियों के रखने के लिये कोई मकान न मिला तो सिराजुद्दौला के नौकरों ने एकसौ छियालीस (१४६) अग्रेज़ों को एक ही कोठरी में, जो केवल अठारह फुट लंबी और चौदह फुट चौड़ी थी, बंदकर दिया। (१) उस सांसतघर में जो कुछ उन कैदी बिचारों के जी पर बीता होगा, उसे वे ही अभागे जानते होंगे! उनमें कितने घायल थे, बहुतेरे शराब के नशे में प्यास से व्याकल थे और कई, मल मूत्रादि के बेग के रोकने से बहुत ही बेचैन थे!

निदान, सबेरे जब उस काल कोठरी का दर्वाज़ा खोला गया, तो एकसौ छियालीस गोरों के केवल तेईस गोरे जीते निकले जो मुर्दो से भी गए बीते थे! उनमें से हालवेल साहब सिराजुद्दौला के सामने पेश किए गए, उनसे वह दुराचारी बार बार यही पूछता रहा कि,-'बतलाओ, अगर जांबख़शी चाहते हो तो जल्द बतलाओ, अंग्रेजों ने ख़ज़ाना कहां छिपाकर रक्खा है?"

किन्तु बिचारे हालवेल साहब ने इस बात का कुछ भी जवाब

[१]

  1. (१) इस कोठरी का नाम अंग्रेजों ने Black hole अर्थात् कालीबिल रक्खा है।