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परिच्छेद)
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आदर्शरमणी।



आपके नखसिख की क्या मजाल, जो कुसुम की परछाईं की भी परछाईं छू सके! इसीसे झींखते हैं कि आज कुसुम के रूप का बखान करने का हठ करके हमने अपने तई आप उल्झन में डाला!!!

तो अब हम क्या करैं! कुसुम की रूपराशि के चित्रित करने के लिये जब जब हम दुमुही लेखनी को पड़कते हैं, तब तब वह नागिन की तरह थिरककर हाथ से छूट कोसों दूर भागती और अपना मुंह चुराती है, तथा सारे उपमान भी अपनी जड़ता का आप ही आप अनुभव कर लजित हो, इधर उधर दुम दबाकर खसक जाते हैं; तो ऐसी अवस्था में अब हम करें तो क्या करें! हाय! क्यों ऐसी उल्झन में भी कभी मनुष्य उलझता है!!!

खैर, तो हार मानकर इस जंजाल से अपने तईं अब दर क्यों न करें! क्योंकि कुसुम की रूपराशि का बखान करना हमारी शक्ति से बाहर है। और क्यों न ऐसा हो, जब कि षोड़शी कुसुम की किशोर अवस्था में भी ऐसी स्थिरता और कोमलता है कि जो उसके सहज लावण्य की उपमा को कवि की प्रतिभा द्वारा क्या कभी उत्पन्न होने दे सकती है! अहा! जिस मनोहारिणी लावण्यमयी मूर्ति के एक बार दर्शन करने से,'आबालवृद्धवनिताः, सर्वेऽङ्ग पशुवृत्तयः,' होजाते हैं, उस अनुपम मनोमोहिनी की असीमसुन्दरता के बखान करने का बीड़ा उठाकर हमने खूब ही अपयश लूटा!!!

यदि कोई चतुर चित्रकार उस चित्त के चंचल कर देनेवाली कुसुमकुमारी की अनुपम रूपराशि के चित्र उतारने के लिये हाथ उठाता तो निश्चय है कि उसे पहिले मूर्छा धर दबाती और उसका सारा सयानपन भूल जाता; फिर अन्त को उसे अपनी उस ढिठाई के लिये बहुत ही पछताना पड़ता और हार मान यों कहकर हाथ से कूची रखदेनी पड़ती कि,-'देवी! तुझ सी तुही है!'

सोचने की बात है कि चंपा, चमेली, गुलाब और जपाकुसुम के रंग के समान पीले, सफ़ेद, गुलाबी, और लाल रंग के मेल से बना हुआ कुसुम के सुकुमार शरीर का सा अलौकिक रंग वह बापुरा चितेरा कहांसे लाता! फिर उस भाग्यवती के बिशाल भाल के लिखने के समय यदि उस (चितेरे) को कुसुमायुध की रंगस्थली का ध्यान आजाता तो वह अनाड़ी अनमना सा हो, रेखागणित के साध्यों की भांति न जाने क्या का क्या लिख मारता!!!