तुम यात्रा कर रहे हो, एक साधारण सिपाही का नहीं हो सकता!"
बीरेन्द्र ने कुसुम की ओर देख मुस्कुराकर कहा, "यह तुम्हारी भूल है कि तुमने मुझे एक अदना सिपाही ही समझ लिया; बरन तुम यों समझो कि तुम्हारा प्यारा केवल सिपाही ही नहीं, बल्कि सिपाहियों का सर्दार है!"
कुसुम ने मुंह बनाकर कहा,-" चलो, हटो, तुम कपटी 'हो! तुम्हारी बातें मैं नहीं सुनना चाहती!"
'बीरेन्द्र ने कहा,-"ऐ! भला, मैंने तुमसे क्या कपट किया!"
कुसुम,-यही कि मेरा मन मुझसे बार बार यों कह रहा है, कि,-'ये (तुम) कपटी हैं, (हौ) इसलिये कि इन्होंने (तुमने) अभी तक अपना सच्चा भेद न बतलाकर तुझे (मुझे) भुलावे में डाल रक्खा है!' क्यों, यह बात क्या झूठ है?"
बीरेन्द्र ने मुस्कुराकर कहा,-"तो आख़िर, तुम्हारे चुगलखोर चित्त ने तुमसे यह भी तो बतलाया होगा कि,-'यह (मैं) कपटी, सचमुच है (हूं) कौन?' बतलाओ?"
कुसुम ने बीरेन्द्र की ओर उत्कण्ठित नैनों से निहारकर कहा,-"प्यारे, सच बतलाओ, तुममें और महाराज नरेन्द्रसिंह में कितना अंतर है?"
बीरेन्द्र ने खिलखिलाकर कहा,-"अक्ख़ाह! यह न कहो! अब तो जान पड़ता है कि तुम्हारा चुटीला चित्त महाराज नरेन्द्रसिंह की खोज लगाने लगा! चलो, अच्छा हुआ, इस बात से मुझे भी बड़ा आनन्द हुआ; क्यों कि मैं तो ऐसा चाहता ही था; और सच तो यों है कि राजकन्या का चित्त क्या राजा को छोड़कर किसी (मुझ जैसे) अदने सिपाही पर कभी चल सकता है!"
इतना सुनते ही कुसुम को क्रोध हो आया और उसने ताव पेंच खाकर बीरेन्द्र के हाथ को, जो उसके आगे बढ़ रहा था, झटके से दूर कर दिया और उनकी ओर से अपना मुंह फेर लिया। फिर तो बीरेन्द्र उसे हज़ार ढंग से मनाने लगे, पर उस मानवतीका मनाना उनके लिये उस समय कठिन होगया! इतने पर भी उनकी छेड़-ख़ानी कम न हुई और पहिले तो उन्होंने थोड़ी सी बारूद में ही आग लगाई थी, पर अब तो मेगज़ीन ही में बत्ती लगादी; अर्थात उन्होंने यों कहा,-"अच्छा तो,श्रीमती राजकुमारी, कुसुमकुमारी