खोलते ही बीरेन्द्र को देख बड़ी खुशी के साथ आगे बढ़कर कहा,-
"अहा! आप आगए? बड़ी बात हुई जो आप आए। ठहरिए, मैं मां जी से आपके आने की खबर करती हूं।"
यों कहकर उसने दालान में बीरेन्द्र के बैठने के लिये चटाई बिछादी और तब वह उनके आने की खबर सुनाने के लिये कमला देवी की कोठरी की ओर चली। कुसुम भी उसके पीछे पीछे अपनी मां के पास गई।
ज्यों ही चम्पा ने जाकर बीरेन्द्र के आने का समाचार कमलादेवी को सुनाया, त्यों ही वह एकबार ज़ोर से चीख मारकर बेहोश हो गईं; जिसे देख चम्पा और कुसुम ज़ोर से रो उठीं और बीरेन्द्र को दौड़कर उसी कोठरी में जाना पड़ा। उन्होंने जाकर देखा कि,-" एक पुरानी टूटी हुई खाट पर, जिस पर एक बहुत ही मैली और फटी हुई सुजनी बिछी है, कमलादेवी बेहोश पड़ी हैं और उनके पेट पर सिर रक्खे हुई चम्पा और कुसुम रो रही हैं! कोठरी में आले पर एक दिया टिमटिमा रहा है और दो चार मामूली बरतनों के अलावे और वहां पर कुछ भी नहीं है!"
दरिद्रता के ऐसे भयानक दृश्य को देखकर बीरेन्द्र का कलेजा मुंह को आने लगा और बड़ी कठिनाई से उन्होंने अपने को सम्हाला। फिर उन्होंने चम्पा और कुसुम को शान्त करके कमलादेवी के पास से हटाया और उनके मुख पर पानी के छींटे देदे कर बड़ी कठिनाई से उन्हें होश कराया।
बीरेन्द्र के एकाएक गायब होने के थोड़े ही दिनों बाद से ही कमलादेवी ने खाट पकड़ी थी और तब से वह बरावर बीमार ही चली आती थीं; सो आज एकाएक बीरेन्द्र का आना सुनकर मारे खुशी के वह इतने ज़ोर से चीख उठीं कि बेहोश होगई और बडी कठिनाई से फिर होश में लाई गई।
निदान, जब वह होश में आईं तो बीरेन्द्र ने उनका चरण छूकर प्रणाम किया। कमला ने बहुत चाहा कि उठे, पर बीरेन्द्र ने उन्हें उठने न दिया और उनके पास बैठकर कहा,-
"मां! आपका जो कैसा है?"
कमला ने आंसू ढलकाते ढलकाते कहा,-
"बेटा! जैसा तुम देखते हो। हा! इतने दिनों तक अपनी इस