पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/१६

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एकाएक महा क्रोध का उदय हो आया, आंखें लाल हो गई और सारा शरीर कांपने लगा; किन्तु उसने बड़ी कठिनाई से अपने मन के बेग को रोका और बड़ी नम्रता से कहा,-

"हा! मैं नहीं जानता था कि इस संसार में मित्रता के जामें के भीतर कही कहीं शत्रुता भी छिपी रहती है। अस्तु, मेरी आज्ञा मेट कर जिस दुष्ट ने तुम्हारी सहायता से मुंह मोड़ा, उसे इस अपराध का भरपूर दण्ड दिया जायगा। खैर, सुनो आज सबेरे मैं यहां आया। मैं तुम्हारे यहां आता ही था कि मार्ग में भीड़ भाड़ देख वहां पर ठहर गया था; परन्तु ईश्वर के अनुग्रह से ठीक समय पर मैं वहां पहुंच गया था, इसीसे कुशल हुई, नहीं तो आज बड़ा भारी अनर्थ हो जाता और मेरे लिये संसार स्मशानसा बन जाता। चलो, और बातें घर चलकर होंगी। हां, यह तो बतलाओ कि मां भली चंगी हैं?"

मां का नाम सुनते ही बालिका की आंखों में आंसू भर आए और उसने ठंढी सांस भर कर कहा,-

“हा! ईश्वरही कुशल करे! मां का तो अन्त समय आ पहुंचा है। कई महीनों से वह ज्वर भोगते भोगते अब इतनी गल गई हैं कि चिन्हाई ही नहीं देती। खाना पीना सब छूट गया है, केवल 'राम नाम' की रट लग रही है। आपके लिये वह बराबर आंसू ढलकातीं और आपको याद किया करती हैं।"

यह सुनकर युवक का कलेजा फटने लगा और उसने लंबी सांस लेकर कहा,-

"हा! परमेश्वर! यह मैंने आज क्या सुना! मां की यह दशा है! तो चलो, जल्दी घर चलें।"

बालिका,-"आप भी चलिएगा न?"

युवक,-"अवश्य चलूंगा। और क्यों कुसुम! मैंने तुमसे हजारों बार इस बात को समझाया कि तुम मुझे 'आप' कह कर न पुकारा करो, पर तुम इतनी हठीली हो कि 'आप, आप' का कहना नहीं छोड़तीं। खैर, आज मैं फिर तुम्हें समझाता हूं कि यदि अब से तुम फिर कभी जो मुझे आप 'आप' कहकर पुकारोगी तो लाचार होकर मुझे भी आपको 'आप' कहकर पुकारना पड़ेगा। इसलिये बतलाइए, कृपाकर बतलाइए कि अब आप राह