पृष्ठ:हृदयहारिणी.djvu/१३

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रोक रक्खा। उस समय कमला के विलाप और प्रजाओं के हाहाकार से सारा कृष्णनगर स्मशान सा बन गया था और क्यों न ऐसा होता, जब कि आज कमला का सर्वनाश होगया और प्रजाओं का पालनकर्ता सच्चा पिता ही उठ गया!! हमारी लेखनी में यह सामर्थ्य नहीं है कि यह उस शक के चित्र को खेंच सके इसलिये उस विषय को हम यहीं पर समाप्त करते हैं।

निदान, राज्य का सारा भार सुयोग्य मंत्री महीधर शर्मा के हाथ में सौंपा गया, क्यों कि वे इस योग्य थे और उनमें राजभक्ति के अतिरिक्त वे सभी गुण भरे हुए थे, जिनका होना एक योग्य मंत्री के लिये बहुत आवश्यक है।

यद्यपि महाराज के बैकुण्ठ सिधारने से महीधर शर्मा का कलेजा टुकड़े टुकड़े हो गया था, पर तो भी उन्होंने ऐसी अच्छी रीति से राज चलाना आरम्भ किया कि जिसका नाम।

महाराज के मरने के तीन महीने पीछे कमलादेवी ने चन्द्रकला की भांति एक परम सुन्दर कन्यारत्न को प्रसव किया। पुत्र से बढ़कर लाड़चाव से उसका वह लालन पालन करने लगीं और उसीका मुंह देख कर उन्होंने अपने पिता और पति के वियोग रूपी आग को धीरे धीरे ठढा करना आरम्भ किया; किन्तु इतने पर भी बिचारो कमला की जान को चैन न मिला, क्यों कि जब दैव प्रतिकूल होता है, तब वह किसीको छिनभर भी कहीं सुस्ताकर सांस लेने का अवसर नहीं देता।

निदान, चोट पर चोट खाने से कमला का कलेजा बिल्कुल चकनाचूर हो गया था, तो भी उनकी दशा पर काल को दया न आई और ढांके के नव्याब निवाइसमुहम्मद (जो अलीबर्दीखां का दामाद था) को सनीचर की सी आंख कृष्णनगर पर पड़ी। भला, ऐसे अवसर को वह दुराचारी कब हाथ से जाने दे सकता था,जब कि कृष्णनगर के महाराज मर चुके थे, महारानी अपने आपे में न थीं, प्रजाओं का जी टूट सा गया था और मन्त्री के हजार सिर पटकने पर भी राज्य में एक प्रकार की उदासी छाई हुई थी।

सो एकाएक निवाइसमुहम्मद ने कृष्णनगर को घेर कर बात की बात में उसे अपने आधीन कर लिया। यद्यपि राज्य की सेना