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बेहयाई का बोरका


दूसरा परिच्छेद।

छुटकारा।

"दुर्जनं प्रथमं वन्दे सज़नं तदनन्तरम्।
मुखप्रक्षालनात्पूर्वं पादप्रक्षालनं वरम्॥"

(नीतिमञ्जर्याम्)

जब अ़लाउद्दीन का चचा जलालुद्दीन जीता था, उसी समय में [सन १२९४ ईस्वी] अ़लाउद्दीन ने आठ हज़ार सवारों के साथ दक्खिन के इलाकों पर चढ़ाई की थी। उस समय उसने देवगढ़ [दौलताबाद] के राजा रामदेव को जा घेरा था और बहुत सा सोना, चांदी और जवाहिरात लेकर तब उसका पिंड छोड़ा था; बल्कि कुछ सालाना नज़राना उससे मुक़र्रर कर लिया था। यह मुसलमानों का दक्खिन में पहला चढ़ाव था।

किन्तु अ़लाउद्दीन को रनथंभौर और चित्तौर की लड़ाइयों में ग़ाफ़िल देख, रामदेव ने एक कौड़ी नज़राना नहीं भेजा था। इस बात को जब ग्यारह बरस बीत गए और अ़लाउद्दीन चित्तौर का सत्यानाश करके दूसरे राज्यों के तहस-नहस करने का मन्सूबा बांधने लगा तो उसे रामदेव का ख़याल हुआ और उसने चिढ़कर [सन् १३०६] देवगढ़ पर अपनी फौज भेजी थी।