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हीराबाई


नवां परिच्छेद।

प्रपंच।

"यस्य यस्य हि यो भावस्तेन तेन समाचरेत्।
अनु प्रविश्य मेधावी क्षिप्रमात्म वशं नषेत्॥

(नीतिसमुच्चये)

एक दिन हीरा ने अ़लाउद्दीन को खुश देख हाथ जोड़कर उससे अर्ज़ की कि,-"जहांपनाह! मेरी लड़की देवलदेवी मुझसे भी निहायत हसीन है; हुजू़र उसे भी फ़ौरन मंगवाकर अपने शाहज़ादे खिजरखां के साथ उसकी शादी कर दें। वह देवगढ़ के राजा रामदेव के लड़के लक्ष्मणदेव के साथ ब्याही गई है और गौने में बिदा होकर ससुराल जाने ही वाली है। हुजूर चाहें तो अपनी फ़ौज भेजकर उसे भी यहां पकड़ मगावें।

अ़लाउद्दीन यह सुनकर बहुत ख़ुश हुआ और तुरंत उसने समझा-बुझा-कर फ़तहख़ां को उस ओर रवाने किया। हीरा की सलाह से उसकी लड़की लालन ने देवलदेवी बनकर एक हज़ार सिपाहियों के साथ देवगढ़ के रास्ते में एक जंगल में डेरा डाला था और वहीं टिककर वह बादशाही फ़ौज का रास्ता तकने लगी थी। साथ के सिपाहियों में से यह भेद किसी को मालूम न था कि,-'यह असली देवल-