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हीराबाई



देवी लालन को भी उतनाही प्यार करती थी, जितना कि वह देवलदेवी को चाहती थी।

उसी साल देवलदेवी का ब्याह देवगढ़ के राजा रामदेव के पुत्र कुमार लक्ष्मणदेव के साथ हुआ था और वह सुसराल जानेवाली थी; किन्तु बीच में अ़लाउद्दीन की फ़ौज के आजाने से उसकी बिदाई रुक गई थी।

देवलदेवी के ब्याह हो जाने पर कमलादेवी को लालन के ब्याह की बड़ी चिन्ता लगी हुई थी, पर वह लालन का ब्याह किसी आली ख़ान्दान मुसलमान के घर किया चाहती थी, इसीसे लालन के ब्याह में देर हो रही थी।

आठवां परिच्छेद।

आत्मबलि।

"किं दुस्सहंतुसाधूनां विदुषां किमपेक्षितम्।
किमकार्यं कदर्याणां दुस्त्यजं किं धृतात्मनाम्॥"

(श्रीमद्भागवते)

अब हीराबाई कमला बनकर दिल्ली जाती है! उसने आज दिनभर अपनी प्यारी और समझदार लड़की लालन को न जाने क्या-क्या सिखाया पढ़ाया है और उसे धीरज दे तथा कमला से गले