इसलिये यदि मेरे ही जाने से आप, आप के राज्य और इन निरपराध लाखों जीवों का धन-मान बचता है तो मेरा दे डालना ही अच्छा है। आप इस बात का विश्वास रक्खें कि आपको छोड़कर कमला जीती हुई कभी दिल्ली न पहुंचेगी। हां! मेरी मरी मट्टी को लेकर दुराचारी अ़लाउद्दीन जो चाहे सो करे।"
विशालदेव,---[रोते-रोते] "प्रियतमे! हा! भगवन् भास्कर! तुम्हारे वंशधरों की, पवित्र भारतभूमि की और महावीर क्षत्रियजाति की यह लाञ्छना!!! प्रियतमे! हमे अपने जीने न जीने, या राजपाट की कुछ भी पर्वा नहीं है, किन्तु इन निरपराध प्रजाओं के विनाश का ध्यान जब होआता है, तो हमारी बुरी दशा हो जाती है! हा! सिवाय मर मिटने के, हम बादशाही फ़ौज का किसी भांति भी सामना नहीं कर सकते।"
कमला,---"इसीसे तो-नाथ! कहती हूं कि आप समझ लीजिए कि आपकी सारी दुर्दशा की जड़ निगोड़ी कमला आज मर गई!"
विशालदेव,---"प्यारी! ऐसा काम तो हम प्राण रहते, कभी नहीं करेंगे, इसमें चाहे जो होय!"