पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/८८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सब हीरे जाहिरात और अपनी सब टइलनियाँ बन्द होलियों मैं लाऊंगी जिनको तुरुक सिपाही न देखें। अलाउद्दीश अह समझा कि पहिनी सचमुच दिल्ली की मलका होने आती है और यह बात मान ली। ७--पमिनी की डोली किले के बाहर लाई गई और सब में सोचा कि पशिनी इसी में होगी पर डोली में एक वीर राजपूत लड़का बादल था। उसके साथ कोई सत्तर और डोलियाँ थीं जिन में तुको ने समझा कि हलिनियाँ होंगी पर उनमें भी एक एक धीर राजपूत था। एक एक पालकी को छ: छः आदमी जो कहारों के भेष में वोर राजपूत थे उठाये हुए थे और वह अपनी ढाल तलवार डोली में छिपाये थे। ८-पश्मिनी के चचा गोराने तक अलाउद्दीन से कहा कि पद्मिनी राजा से विदा होना चाहती है। खिलजी बादशाह अलाउद्दीन इस समय यह जान कर कि अब पशिनी और उसके सब हीरा मोती उसके हाथ में हैं बड़ा प्रसन्न था; उसने कहा "बहुत अच्छा भीमसी उस डेरे में है पशिनी उससे विदा हो ले पर वह एक ही बड़ी ठहरे।" -पमिनी की डोली उस डेरे में पहुंचाई गई । बादल ने उसमें से उतर कर भीमसी को कवच पहिना दिया। थोड़े समय में जब अलाउद्दीन उस डेरे में गया तो राजपूत लोग अपने डोलियों से निकल पड़े। डोली