पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/२१३

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" को जो मुर्शिदाबाद के पास गङ्गाजी के किनारे छोटा सा नगर है भेजा गया था। सात बरस सक वा माल मोल लेने और बेचने का काम करता था। जब सन् १७५७ ई० में शिडटौला ने अगरेजों से लड़ाई की तब वह काल कोठरी में नहीं बन्द दुभा था पर में कैद था। वह वहाँ से भाग हर साहब के साथ हो लिया ओ मद्रास से सेना लेकर आ रहा था: बह सिपाही था पर फिर भी बड़ा वीरता से लड़ा और लक्ष्य को ऐसा माया कि उदमै रमाके यहां जिसका कि उसने नवाब बनाया था को रेजिडेंट बनाकर भेजा। इसके तौल पर पीछे हेस्टिङ्ग कलकरने की कौंसिल का भेम्बर समाया गया। --अब ऐसा समन्द आया कि कम्पनी के किरानियों को भी राज काज में सहायता देने की आवश्यकता हुई। यह ऐसा काम था जिस का यह कुछ भी न जानते थे। दिनों हिन्दुस्थान में एक खेली रीति मुइतों से चली आती थी कि प्रजा अपने राज करनेवालों को भेंट दिया करती थी और यह भेंट कभी कभी बहुत बड़ी होती थी। अच्छ भेंट लेना मना है पर तख वैसा कोई नियम न था। सो बहुत से कम्पनी के नौकर भेंट लेकर बड़े धनी बन गये थे। हेस्टिङ्गर उस समय बड़े पद पर था और यह चाहता तो