पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१७७

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कहते हैं मैं आप के लिये लड़ता हूँ। शुजाउद्दौला और काशीराय तब नजीबुद्दौला के पास गये और उस को पनी सुनाई। नवाब ने उससे पूछा "आप क्या कहते हैं क्या हम को सन्धि करनी चाहिये।" रुहेले सरकार ने कहा "नहीं इस समय बैरी दुर्बल और सङ्कट में हैं ; यह तय मान जाय और कसम भी .खार्थ पर कसम भी जंजीर नहीं है, यह बांधती नहीं निरी बातें हैं। आप छोड़ देंगे तो कया व अपना बचन रखेगा? क्या आप समझते है कि वह जब आपको अपने हाथ में पायेगा तो छोड़ देगा ? यह महरठा हमारी बगल का काँटा है, इस को निकाल कर छोड़ना चाहिये।"

७- इस पत्री का कुछ जबाव न भेजा गया। भाऊ ने

देखा कि मैं फदें में फंस गया और निकाल नहीं सकता। अन्त में उस की सेना के सब सरदार उसके पास आये और उससे बोले कि “हम को दो दिन से कुछ खाना नहीं मिला है और ऐसा ही रहा तो हम लोग सब मर जायगे, यदि मरना ही है तो हम को लड़ने दीजिये और लड़कर मरने दीजिये।" भाऊ ने भी कहा कि अब लड़ाई के सिवा दूसरा चारा नहीं। जब रात आई अब अनाज जितना बचा था लाया गया और लोगों को दे दिया गया कि वह अन्तिम बार पेट भर खाकर दूसरे दिन लड़ने जाय पर अनाज अद्भुत न था और बहुतेरे सिपाहियों को कुछ न मिला।