पृष्ठ:हिन्दुस्थान के इतिहास की सरल कहानियां.pdf/१५४

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में बैठी चिक के आड़ से यह चरित्र देख रही थी। कोमलचित शाहजादी को शिवाजी की वीरता और उस की विठाई सो अच्छी लगी कि उसने अपने बारसे बिनती की कि शिवाजी के प्राण वा लिये जायें और इसी से शिवाजी से उन समय कोई न बोला। इस स्त्री का नाम ज़ेबुन्निसा था। -जेबुभिसा बड़ी सुन्दर और बड़ी चतुर थी और औरङ्गजेब ज़ेबुनिसा। उसे बहुत मानता था। फारसी भाषा में एक कविता लिखी है जो अब भी पढ़ी आती है। उसे अपने बूढ़े बाप के साथ रहने और सेवा करने में बड़ा सुख मिलता था। इस से उस ने अपना व्याह नहीं किया। जब शिवाजी और उस का बेटा दोनों मर गये सब उसो ने उस के पोते साडू को पाला था। साहू औरङ्गजेब के पास पकड़ कर लाया गया था। ३५-शिवाजी। औरङ्गजेब के हाथों से उसका छुटकारा । १-ज्याँही शिवाजी उस घर में घुसा जो उसके रहने के लिये दिया गया था उस पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया।