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धे शम्भूजी के साथ औरंगजेब की सेवा करूगा और उसके बैरियों से लडूँगा। उधर से जयसिंह ने यह प्रतिज्ञा की कि शिवाजी दरबार में चले तो उस की ऐसी ही प्रतिष्ठा होगी जैसी हिन्दू राजा की होती है और उसे बादशाह की सेना में एक बड़ा पद दिया जायगा और उसका बेटा सम्भूजी पञ्चहज़ारी कर दिया जायगा।

४-शिवाजी की सहायता लेकर जयसिंह ने बीजापुर के

मुसलमान बादशाह पर बढ़ाई कर दी और उस को पराप्त किया। औरङ्गजेब ने जब यह समाचार सुना तो ऐसा जान पड़ा कि वह भी प्रसन्न हो गया। उसने शिवाजी को एक चिट्ठी लिखी और उसे दरबार में बुलाया और कहा कि जो जो प्रतिक्षायें जयसिंह ने की है सब पूरी की जायेगी।

५-उन दिनों औरङ्गजेब का दरबार आगरे में था।

शिवाजी ५०० सवार और १००० पैदल लेकर आगरे को चल खड़ा हुआ। उस के साथ उसका लड़का शम्भूजी भी था जो नवहर वर्ष का बचा था। जयसिंह ने भी अपने बेटे रामसिंह को जो दरबार में था यह लिख भेजा कि हम वचन दे चुके हैं शिवाजी की मान-हानि न होने पाय।

६-पर जब शिवाजी आगरे पहुंचा और बादशाह को

३० हजार रुपयों की नज़र देने गया तब उस का आदर न किया गया। औरङ्गजेब यह दिखाना चाहता था कि. हम बहुत बड़े हैं और शिवाजी को तुच्छ समझते हैं।