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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


पुरुषों की मृत्यु पर शोक-सभा करना जनता का एक प्रधान कर्तव्य है।

कभी-कभी लोगो को अपने किसी घनिष्ठ मित्र के नाम किसी व्यक्ति को परिचय-पत्र देना पड़ता है। यह परिचय पत्र तब तक न दिया जावे जब-तक लिखने वाले को यह मालूम न हो कि जिस व्यक्ति को परिचय पत्र दिया जाता है उससे लेखक का घनिष्ठ मित्र अप्रसन्न तो नहीं है। साथ ही पत्र देने वाले को यह भी जान लेना चाहिये कि अनुगृहीत व्यक्ति परिचय पत्र का पात्र है या नहीं।

गुण-कथन और चापलूसी के अन्तर पर ध्यान रखने की आवश्यकता है। यद्यपि असाधारण गुण-कथन में चापलूसी का थोड़ा-बहुत अाभास अवश्य रहता है, तथापि उसमे स्वार्थ सिद्ध करने की नीच और कपट-मय प्रवृत्ति नहीं रहती। नीति की सूक्ष्म दृष्टि से साधारण गुण-कथन में भी चापलूसी दिखती है, तथापि शिष्टाचार के विचार से उसकी अल्प मात्रा क्षमा के योग्य है।

(६) पहुनई और अतिथि-सत्कार में

लोगो को अपने ऐसे मित्रों और नातेदारों के यहाँ कभी-कभी जाकर कुछ दिन रहने का काम पड़ता है, जो किसी दूसरे स्थान में रहते हैं। कभी तो पहुनई करने का अवसर ही आजाता है और कभी यह अवकाश के समय इच्छा से की जाती है । मित्र और नातेदारो के यहाँ से बहुधा पहुनई के लिए निमन्त्रण भी आ जाता है। जो कुछ हो, पहुनई में जाने के पूर्व इस बात का मन में विश्वास अवश्य कर लेना चाहिए कि जिनके यहाँ पहुनई में जाना है उनकी इसके लिए हार्दिक इच्छा है या नहीं, क्योंकि कभी कभी पहुनई के लिए केवल शिष्टाचार की ऊपरी दृष्टि से अनुरोध किया जाता है।

जिसके यहां पहुनाई में जाना है उसकी आर्थिक और कौटुम्बिक परिस्थिति पर ध्यान अवश्य रखना चाहिये । यदि उसकी स्थिति